युगान्तर

वो सुबह कभी तो आयेगी..............

कौन कह गया कि फलों से लदे पेड झुकते है.....?

बडी उम्मिद से २-३ महिने पहले टिकट बनवाई थी.. गर्मी कि छुट्टीयों मे नानी के घर जायेगे.. छुट्टी मे घुमने किसी हिल स्टेशन जायेगे.. गांव जायेगे.. शहर जायेगे.... पता नही.. क्या क्या.. लेकिन १५ दिन हो गये.. सब अपनी जगह खडे है.. या ये कहे कि अडे है.. और आप हम जैसे आम आदमी अटके है.. ..
अटकन के इस समय मे एक बात और अटक गई है.. और इस बार अटकन भी बडी अजीब है.. या कहे कि ये अटकन नहीं अकड है...महारानी साहिबा कि..महारानी इसलिये क्योंकि.. मुख्यमंत्री तो जनता का होता है...

अब मुद्दे पर.. महारानी ने बयाना जाने से मना कर दिया.. कहती है..कि.."बयाना मे एसी कोइ जगह नहीं है जहां बात हो सके.."
महारानी भुल गई कि वो १२ दिन पहने बात करने ही बयाना गई थी.. तब बैसला जी पीलुपुरा में अटके थे.....महारनी ने पीलुपुरा जाने से मना कर दिया... कहा.. बयाना आओ...अब बैसला जी..१२ दिन मे ३० किमी चल के बयाना आये है..तो महारानी जयपुर बुला रही है...पता नही बात करने मे जगह क्या भुमिका अदा करती है...और १२ दिनों मे उस जगह को क्या हो गया..
बैसला जी आप तो वहीं जमे रहो... क्योकीं इस स्पीड से आप जयपुर जाओगे... तब तक हो सकता है.. महारनी.. चली जाए... इलेक्शन आने को है.. आप तने रहो..

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