अमीर के कुत्ते, गरीब के बच्चे !!
मेनकाजी के लिए: माफ़ करे मेरी कुत्तों के प्रति कोइ दुरभावना नहीं है.
पठको के लिये:
अखबार मे पढा, टी वी पर देखा और ब्लोग में भी पढा खुशी (?) की खबर ये है कि गुडगाँव मे प्यारे "टोमी" के लिए अब ५* होटल खुल गया है, और हां कल ही मुम्बई मे एक फ़ैशन शो भी हुआ.
बात तो अच्छी है, हर प्राणी को हर भोग का अधिकार है, और क्यो न हो कोई प्राणी विषेश होने से हीन नहीं हो जाता.
आज लाखों बच्चे (मनुष्य के) बाल मजदुरी को विवश है, लाखों को भुखे सोना पडता है, लाखों ने स्कुल का मुह नहीं देखा, लाखों शोषण (यौन भी) का शिकार है.... ना जाने और क्या क्या.
वैसे कुत्तो की समस्या भी कोई कम नही है, रहने को जगह नहीं, कोइ खिलाने वाला नहीं, हर गली से भगा दिये जाते है, मुन्सिपल्टी वाले पकड के बाडो मे कैद कर देते है, और कई जगह तो जबरदस्ती नसबन्दी कर देते है और भी कई समस्याये है.
इन सभी बातों को देखे तो पता चलेगा की इन सभी समस्यओ का सम्बन्ध केवल "मनुष्य" या "कुत्ता" होने से नहीं है .
ये मुद्दा समाज मे बढते असंतुलन का है.
होटल और फ़ैशन शो केवल "अमीर कुत्तो" के हाथ आते है और अशिक्षा और भुखमरी "गरीब बच्चो" के.
पिछ्ले सात सालों मे अर्थव्यवस्था मे चाहे जो तरक्की हुइ हो लेकिन कुपोषण मे केवल एक प्रतिशत कि कमी आई है. यह बात ये सिध्द करती है कि समाज का और सरकार का ध्यान कहाँ है.
प्रधानमंत्री ने कुछ समय पहले कहा था "संसाधनो पर पहला हक अल्पसंख्यकों का हो" क्या यह हक गरीबों को भी दिया जाना चाहिये!
अमीर के कुत्ते, गरीब के बच्चे !!
मत कहो इसे काला पानी.......
"मत कहो इसे काला पानी, ये है शहीदों की अमर निशानी"
ये ही लिखा है सेलुलर जेल में..
मित्रों,
आजादी के इस तीर्थ का दर्शन कर मन शहिदों के आगे नत मस्तक हो जाता है, पता चलता है कि हमारी आजादी के लिये उन्होने क्या क्या नहीं सहा..
ऎसी ही कुछ तस्वीरें आपके लिये.
(फोटो: अमित चक्रवर्ती)
कुछ कर दिखाना है.!!!
महिला ओटो चालक
हमेशा कि तरह जब आज ओफिस से घर जाने के लिये IIT गेट पहुचा तो दिमाग मे तनाव था... आज हाथ मे अपेक्षा से ज्यादा सामान था.. मन मे कई प्रशन थे...ओटो मिलेगा कि नहीं .?. कब मिलेगा... ? वो चलने के लिये राजी होगा या नहीं..? कितना पैसा मागेगा... ?.. इत्यादि..इत्यादि...
खैर.. जैसे ही मुख्य सड्क पर पहुँचा दुर से एक खाली ओटो आता हुआ नजर आया...
ओटो पास आया तो देखा कि चालक एक महिला थी.. आश्चर्य हुआ.. सुना तो था पर देखा पहली बार .. चालक ने सफेद शर्ट पहना था .. धुला हुआ.. इस्तरी किया हुआ.. (जो दिल्ली से बाहर के है उनकी जानकरी हेतु .. सामान्यत: ओटो चालको की प्रथम छाप (first impression) अच्छी नहीं होती..)
मैने पुछा - मालवीय नगर चलोगे..?
बैठो..
(शायद पहली बार कोई एक ही बार मै राजी हो गया... बिना किसी प्रश्न के .. किराया नही पुछा लगा की .. ओटो के प्रति आज मेरी सभी धारणाए टुटने वाली है और किराया भी मीटर से देना होगा..)
ओटो थोडा चलने पर उसने कहा "३० रुपये लगेगें" ... जबाब दिया "मैडम हमेशा तो २० देता हु.." खैर बात २५ मै तय हुई..
ओटो चलाने मै वो अपने किसी भी पुरुष साथी से १९ नही थी... आत्मविश्वास था.. ओटो पुरी स्पीड से दौड रहा था.. हर गाडी से ओवरटेक करने कि होड... हर छोटी जगह से आगे निकलने कि चाह.. कोई फर्क नहीं ... जहां तक driving का सवाल हे.. हां एक फर्क था.. चालक ने अपने पांव dashboard पर नहीं रखे थे..
छोटा सफर था .. जल्द ही समाप्त हो गया.. ओटो से उतर कर पैसे दिये.. तब नजर पडी कि चालक के सिने पर एक बैज भी लगा था..."सुनीता चौधरी, प्रथम महिला ओटो चालक"
यह एक उदहरण है महीलाओ के उस जज्बे का जहा वो आज हर क्षेत्र मे अपनी presence दर्शाने को बेताब है.. उनके लिये कोई भी क्षेत्र आज अछुता नहीं है.. उन्हे आगे बढना है.. कुछ कर दिखाना है.!!! हर हाल मे..
सलाम !!!!!
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क्या गधों कि हत्या जायज है...???
माफी सभी से शिर्षक मे "गधो" लिखने के .... लेकिन इसे विषेशण के रुप से ले । तात्पर्य पशुओं से है।
एसा इसलिये लिखना पडा कि एक शीर्षक पर नजर पडी लिखा था "क्या मुसलमनो कि हत्या जायज है"... इसे सोचने पर विवश किया... एसा शिर्षक क्यों...?
किसी भी सभ्य समाज मे "हत्या और जायज" शब्द साथ नहीं आ सकते । हत्या, हत्या है। घोर निन्दनीय..... चाहे मुसलमान की हो या हिन्दु की, चाहे सिक्ख की या इसाई की... भारत मे, इराक मे, अमेरीका मे...
बात केवल मनुष्यों कि क्यों... हत्या तो जानवरों की भी नाजायज है... चिटीं की भी.....और शेर की भी॥
कोई भी बुद्धीजिवी जब किसी घटना का समर्थन करता हुआ प्रतित होता है तब भी वो इस प्रकार के कृत्य कि निन्दा करते हुए अपनी बात रखता है.. अगर मै मुसलमान हु तो मेरे लिये हिन्दु कि हत्या जायज नही हो सकती... और अगर मै हिन्दु हु तो मेरे लिये मुसलमान कि हत्या जायज नही हो सकती... कैसे हो सकती है.. कोई धर्म ये नही सिखाता...
असल मे हम घटना के पिछे छुपे सामजिक और राजनैतिक कारणो कि विवेचना करते है...
हाँ मैने आतकवादीयों को हत्याओं को जायज ठहराते सुना है...
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