त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट से -
कन्याकुमारी जिले से वापसी (दिल्ली) की यात्रा थकाने वाली होती है.. कन्याकुमारी के जिला मुख्यालय नागरकोविल से त्रिवेंद्रम और त्रिवेंद्रम से दिल्ली..
प्राथमिकता रहती है कि त्रिवेंद्रम से सुबह कि फ्लाईट से दिल्ली आ जाये.. त्रिवेंद्रम से IC कि फ्लाइट ’नल आर आर’ मतलब IC 466.. (इतनी मलयाली तो समझ आ गई) सुबह ६.१५ पर चलती है.. तो सुबह ५.१५ पर एयपोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दे दाली.. और कुछ ही सेकण्डस में हमारी सारी थकान दूर हो गई..
मुख्य दरवाजे पर सुरक्षा कर्मी को टिकट थमाया.. उसने देखा (टिकट का जो हिस्सा उसके सामने था उसमें ज्यादा से ज्यादा ये ही पढ़ सकता था).. कि किस तारिख और समय कि फ्लाईट है.. किसका टिकट है.. शायद उसे मतलब नहीं... और मैं इंतजार कर रहा था कि अब वो मुझसे परिचय पत्र मागेंगा, एक हाथ जेब की और जाने वाला था कि मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.. उसने इशारा किया "रहने दो"... मजा आ गया सुबह सुबह प्रमाण पत्र मिल गया कि मै शरिफ़ हूँ.. और ये मेरी शक्ल पर लिखा है..और क्या चाहिये..
मजे कि बात ये कि बोर्डिंग कार्ड जारी करने वाले महाशय ने भी मेरा परिचय पत्र नहीं मांगा... तो आप निश्चिंत रहिये.. हमारी सुरक्षा कुशल हाथों में है.. या कम से कम मैं तो शरिफ़ हूँ..:)
सकुशल पहुचे तो दिल्ली जाकर आपकी प्रतिक्रिया देखेगें..
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यहां देखे आदि आज क्या नई शरारत कर रहा है...
हमारी तो शक्ल पर लिखा है कि हम शरिफ़ है..
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हमारी मेट्रो और तुम्हारी स्काई ट्रेन..
पिछले दिनों बैंकाक गया तो स्काई ट्रेन की सवारी की.. स्काई ट्रेन बोले तो वहाँ की मेट्रो.. पेश है स्काई ट्रेन और दिल्ली मेट्रो की तुलना..
- साफ सफाई के मामले में दोनों टक्कर की है.. प्लेटफार्म चकाचक.. ट्रेन चकाचक.. पर पटरी पर आते हमारी मेट्रो थोड़ी पिछ़ड जाती है.. वहाँ पटरी साफ दिखती है.. पर हमारी मेट्रो पर कुछ कुछ रंगीन निशान दिखाई देने लगे है.. पान और गुटके की पीक के
- हमारी मेट्रो में चार डिब्बे है (अभी तक) और स्काई ट्रेन में दो/तीन.. मतलब हमारी मेट्रो में ज्यादा लोग सफर करते हैं.. डिब्बो में सीटों को देखे तो हमारे यहाँ सीटों की बनावट इस तरह से है कि आठ की जगह मैं नौ तो आराम बैठ सकते है पर स्काई ट्रेन में सीटें इस तरह से है कि एडजस्ट नहीं कर सकते.. एक पर एक ही..
- हमारी मेट्रो में जिसको जो सीट मिले बैठ जाते है.. और एक बार बैठने पर हम किसी को सीट नही देते. चाहे महिलाये बुजुर्ग खडे़ हो.. पर स्काई ट्रेन में सीटों पर ज्यादातर महिलायें बुजुर्ग बैठे मिलते है.. हाँ कुछ सीटें बोद्ध भिक्षुओं के लिये आरक्षित भी है..
- स्काई ट्रेन बैंकाक के एक छोटे हिस्से को ही कवर करती है.. अतः आप बहुत सिमित जगह ही यात्रा कर सकतें है... जबकी मेट्रो दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा कवर करती है और विस्तार भी हो रहा है..
- मेट्रो परियोजना एकिकृत है.. मतलब अण्डर ग्राऊडं और एलिवेटेड एक ही योजना का हिस्सा है... आप एक ट्रेन से एक टिकट से दोनों हिस्सों में सवारी कर सकतें है.. जबकि बैकाक में स्काई ट्रेन और अंडर ग्राउडं ट्रेन (MRTA) दो अलग योजनाऐं है.. इंटरचेंज स्टेशन पर आपको एक प्लेटफार्म से बाहर आकर दुसरे प्लेटफार्म में जाना पड़ता है.. लेकिन (शायद) एक टिकट से काम चल जाता है . (मैने MRTA में सफर नहीं किया, इस बार जाऊगां तो ट्राई करुंगा)..
- टिकट मेट्रों में काफी लोग टिकट खिड़की से टिकट लेते है.. सिस्टम मेन्युल है.. BRT स्टेशन पर टिकट वेंडिंग मशीन लगी है.. सिक्के आपको काउंटर पर मिल जाते है और टिकट खुद लेना होता है.. जो एक विजिटिंग कार्ड जैसा होता है प्लास्टिक का.. मेट्रो में टिकट सिक्के जैसा होता है..
- स्काई ट्रेन बाहार से विज्ञापन से पुती नजर आती है.. अंदर भी काफी विज्ञापन है पर मेट्रो साफ सुथरी है..
- स्काई ट्रेन के कोच में सुचना के लिये डिस्प्ले स्क्रिन है... जिस पर विज्ञापन और सुचना आती रह्ती है..मेट्रो में सुचना के लिये एनलॉग बोर्ड है..
- मेट्रो के भीड़ भरे स्टेशन पर बहुत सुरक्षा इंतजाम होते है.. बल्कि पेसेंजर को चढ़ाने उतारने के लिये मार्शल भी तैनात रहते है.. स्काई ट्रेन के प्लेटफार्म पर एक्का दुक्का सुरक्षा कर्मी होते है.. और सारे लोग आत्म अनुसाशित हो कर चढ़ते उतरते है
- मेट्रो के स्टेशन शहर कि मुख्य इमारतों से नहीं जुड़ते.. आपको मेट्रो स्टेशन से बाहर आकर सडक क्रास कर या पैदल चल अन्य जगह जाना होता है.. स्काई ट्रेन के स्टेशन प्रमुख इमारतों जैसे मॉल, होटल से सीधे जुड़े है.. प्लेटफार्म से बाहर आकर विशेष कॉरिडोर से आप सीधे पहुँच जाते है.. सड़क के ट्रेफिक की आपको चिन्ता करने कि जरुरत नहीं.. और तो और ट्रेन की पटरी के समानान्तर फ्लोर पर (सड़क के उपर दो लाइन है.. पहले पर फुट पाथ और दुसरे पर ट्रेक) पैदल यात्री आराम से चल अपनी मंजिल पर पहुँच जाते है..
- टिकट दर - ये सबसे महत्तवपुर्ण है.. आपको सफर के लिये कितने पैसे खर्च करने होते है..स्काई ट्रेन पर मिनिमन टिकट है १५ बाहत का (लगभग २२ रुपये) जबकि मेट्रो ६ रुपये.. स्काई ट्रेन में ६ किमी जाने के लिये मैने खर्च किये लगभग ३० रुपये.. जबकी मेट्रो में १५ रुपये देकर रोज ३० किमी सफर करता हूँ..
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वैसे आदि अगर ये बतायेगा तो मेट्रो को तेत्रो कहेगा आप समझ लेना..
Photo courtesy
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/47/Bangkok_Skytrain_interior.JPG
www.panoramio.com/
http://cache.virtualtourist.com/236571-BTS_Skytrain-Bangkok.jpg
http://www.readbangkokpost.com/images/skytrain10.jpg
http://www.funonthenet.in/articles/new-delhi-pictures.html
http://www.urbanrail.net/as/delh/delhi.htm
http://risingcitizen.blogspot.com/2009/02/photo-gallery-of-delhi-metro-and-metro.html
आखिर क्या दिक्कत है वाड़ा के नियमों से..
भारतीय क्रिकेटरों से वाड़ा के अनुबंध पर दस्खत करने से इंकार कर दिया... सुना है उनकों एक क्लॉज से दिक्कत है.. और वो ये कि हर खिलाड़ी को अपने हर दिन का हिसाब देना होगा.. अब जब दुनिया के बड़े से बड़े खिलाडियों को इससे दिक्कत नहीं तो भला धोनी, युवी को क्या आपत्ती है.. वैसे तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं लगती पर जरा गौर से सोचने पर दो कारण नजर आते है..
१. अगर हर दिन का हिसाब लिखा जाने लगा तो सबको पता चल जायेगा कि हमारे क्रिकेटर कितने दिन प्रेक्टिस करते है और कितने दिन विज्ञापनों कि शुटिंग और किस किस कम्पनी के लिये.. ये तो लफ़डा हो जायेगा.. बिना पैसा लिये ’सच का सामना’ हो जायेगा.. सारी पोल पट्टी खुल जायेगी.. और अपने पेट पर खुद क्यों लात मारे.. जाओ नहीं देगें ’वाडा’ को हिसाब..
२. दूसरा कारण ये कि सुना है क्रिकेटरों की कई ’गर्ल फ्रेंड’ होती है.. कभी ये डिस्कों में पाये जाते है और कभी कहीं और.. और अगर ये सब बता दिया तो .. भारतीय मिडिया को नहीं जानते.. कर डालेगें स्टिंग ऑपरेशन.. और सारा खेल खत्म.. और इससे जुड़ता एक और मामला है.. सोचो किसी की एक से ज्यादा गर्ल फ्रेंड हो तो.. सारा हिसाब आऊट.. न बाबा न.. इतना रिस्क नहीं लेने का... से नो टु ’वाडा़’
प्ले सेफ...
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वैसे इससे आदि को कोई फर्क नहीं पड़ता वो मस्त है अपनी प्रेक्टिस में.. देखिये..