युगान्तर

वो सुबह कभी तो आयेगी..............

नारद जी, ये आग कब बुझेगी!

हिन्दी ब्लोग जगत में पिछले कुछ दिनों से आग लगी है.. भयंकर आग!! पुरा ब्लोग जगत खेमो में बंट गया हैं..

रोज कई पोस्ट सिर्फ इसी को लेकर लिखी जाती है.. सबसे ज्यादा लोकप्रिय भी यही है... और खुब प्रतिक्रियाऒ का दौर चल रहा है..

नारद भी भारत कि संसद जैसा हो गया है.. जहा कभी सत्ता पक्ष तो कभी विपक्ष कार्यवाही रोकने में लगा रहता है... चुकिं हम मे से ही लोग चुन कर वहा जाते है इसलिये न वहा उम्मीद है न यहा...

खैर, रही बात नारद के फैसले कि वो मेरी नजर में एक सही फैसला था... वो शिर्षक नारद के पेज पर एक दाग जैसा था.. उस फैसले का मैने निजी तौर पर पुरा समर्थन किया....

लेकिन नारद कि टिप्प्णी "आप इमेल भेज रहे है क्या? " मुझे उस ब्लाग से ज्यादा खराब लगी... इस तरह ताल ठोक कर चुनौती देना भी गैर जरुरी है..

अब जब लेखक ने खेद व्यक्त करते हुए अपनी विवादित पोस्ट हटा ली तो नारद को भी अपने फैसले पर फिर विचार करना चाहिये.... और बाजार को बहाल करना चाहिये..


"क्षमा बडन को चाहिये, छोटन को उत्पात"

3 comments:

Only Me June 17, 2007 at 1:51 AM  

सही कहा आपने रंजन भाई। लेकिन संसद और तानाशाही मे कुछ फर्क होता है। लेकिन माननीय अनूप शुक्ल जी ये फर्क नारद को मिलने वाले बनियों के चंदे की आड़ मे भूल गए हैं और तानाशाही के सिध्धांत उन्हें प्यारे लगने लगे हैं। वर्ना नारद पर तो इससे पहले भी तमाम गली गलौज हुई है , तब अनूप जी को कोई ख्याल नही आया। लेकिन जब एज साम्प्रदायिकता विरोधी ने कट्टर हिंदुत्व समर्थक को गरियाया तो इन सबको एक तरफ से बड़ी मिर्ची लग रही है। अगर बजारवाले ने इन्हें चन्दा दिया होता तो इनकी हिम्मत ना होती ऐसा कर पाने की या फिर अगर बजर्वाला संघी होता तो ये सरे मिलकर उसका गुणगान कर रहे होते। अब सब मिलकर एक दूसरे का बचाव कर रहे हैं। सही कहा है ...."समरथ को नही दोस गुसाईं "

Unknown July 6, 2007 at 9:10 PM  

Ranjan ji,
bahut sahi likha hai,
नारद भी भारत कि संसद जैसा हो गया है.. जहा कभी सत्ता पक्ष तो कभी विपक्ष कार्यवाही रोकने में लगा रहता है... चुकिं हम मे से ही लोग चुन कर वहा जाते है इसलिये न वहा उम्मीद है न यहा...

likhte rahiye.
http://ghoomtaaaina.blogspot.com

Pramendra Pratap Singh August 13, 2007 at 8:38 PM  

"क्षमा बडन को चाहिये, छोटन को उत्पात"

जब तक किया जा सकता था किया गया। पर छोटन- बड़न होने का दिखावा करें तो दण्‍ड अवस्‍यम्‍भावी हो जाता है।

मित्र आप भूल रहे है, अभी भी उक्‍त लेखक का एक ब्‍लाग नारद पर मौजूद है। नारद की यही कमी है की ब्‍लागर पर प्रतिबन्‍ध लगाकर ब्‍लाग पर लगाया।
सच में प्रहार जड़ में करना चाहिऐ था।

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