युगान्तर

वो सुबह कभी तो आयेगी..............

खुद की अक्ल कहां गई थी?

कल से एक समाचार सारे न्युज चैनल पर छाया हुआ है कि एक डॉ रुपये ने तिगुने करने का झांसा देकर करोडो की ठगी की.. सभी उस डा के बारे में बात कर रहे है, चर्चा हो रही है कि उसने किस तरह ठगी की, कब से शुरु किया, वगैरह वगैरह....

ये तस्वीर का एक पहलु है, इसका दुसरा पहलु भी देखना समझना जरुरी है... जरा गौर किजिये यह आदमी सालों से इस ठगी में सलग्न है.. ११ रा्ज्यों में उसका नेटवर्क फैला था, और उसने  लाखों आदमीयों को ठगा.. दिन के उजाले में...कौन जिम्मेदार है वो डॉक्टर? नहीं, वो तो इस पुरे चक्र का एक छोटा सा पात्र है, क्यों  लाखों लोग इतने समझदार निकले जो मान गये कि कोई उन्हें जादुई शक्तियों से रकम तिगुनी कर देगा.. क्या वो सारे के सारे नासमझ थे कि ठगी का ये मामुली खेल नहीं समझ पाये? शायद नहीं. मुझे एक किस्सा याद है सन १९९३-९४ के  आस पास का, जोधपुर में एक एजेंसी खुली "वेंकटेश एण्टरप्राईजेज" के नाम से... उसकी स्कीम देखिये १०००० रुपये की वस्तु आपको ४००० रु में मिलेगी.. आप ५०० रू प्रतिदिन के हिसाब से ८ दिन रुपये जमा करवाईये ९ वें दिन वो वस्तु आप घर ले जाइये...कितना सरल... समय के साथ उसने २००००, ३०००० रु की चीजें भी  ओफर करना शुरु कर दिया... खुब धुम धाम से चली से स्कीम .. शुरु के दिनों में उसने कई लोगों को सस्ती चीजें दी... तो क्या लोगों का भरोसा जीत लिया उसने? नहीं.. सभी जानते थे कि वो ठग है और वो शहर से भागेगा.. पर वो ये सोच कर रुपये जमा करवा रहे थे कि इतना जल्दी नहीं भागेगा.. इसी चक्कर में उसका कारोबार बढ़ता गया और लगभग २० दिन बाद लाखों की ठगी कर वो फरार हो गया.. दोषी कौन? ठग? एक हद तक .. पर असली वजह है हमारा लालच.. हम अपने लालच की पट्टी आंखों पर बांध किसी चमत्कार की आशा में गाढे़ खुन पसीने की कमाई किसी के हवाले कर देते है और थोड़े समय बाद हाथ मलते रह जाते हैं.. और दोष देते हैं कि कोई हमें ठग गया...

सवाल  है हमारी व्यवस्था का भी है.. जब ये चमत्कार प्रचारित किया जाता है और घटित हो रहा होता है उस समय हमारी पुलिस, मीडिया, जागरुक नागरिक कहाँ होते हैं.. क्यों हम अपने आस पास की  घटनाओं से अन्जान अपनी दुनिया में खोये रहते हैं..

जब तक ये होता रहेगा  नटवरलाल आते रहेंगें और ठगी होती रहेगी?

अगर बहुत भारी हो गया हो तो आदि के ब्लोग का एक चक्कर लगा आईये,चहरे पर फिर से मुस्कान आ जायेगी गारंटी से!!

5 comments:

अजय कुमार झा May 31, 2009 at 11:04 PM  

bikul sahi kaha aapne ye un ghatnaaon mein bhee lagu hota hai jahan kuchh log pata nahin kin kin jhoothe vaadon aur khwaabon mein padkar pata nahin kya kya kar jaate hain.....

naresh singh June 1, 2009 at 10:44 AM  

बिल्कुल सोलह आना सत्य बात है । इस प्रकार के 420 वाले धन्धेबाज सभी शहरों मे घूमते है और ये सब होता है सरकार के नुमाइन्दो की मिलिभगत से । सभी को पता रहता है लेकिन लालच मे आ कर गला कटा लेते है ।दो चार दिन अखबारो मे हो हल्ला मचता है बाद मे सब शांत ।

योगेन्द्र मौदगिल June 3, 2009 at 7:18 PM  

मूर्खों की कमी नहीं रंजन
एक ढूंढो हजार मिलते हैं

RAJNISH PARIHAR June 11, 2009 at 5:38 PM  

ये लोग जब प्रचार करते है तो किसी को कुछ नहीं दीखता ..बस हर कोई सोचता है की मेरे पैसे तिगुने हो जाये...!तभी तो पुलिस क्या सभी उसकी हाँ में हाँ में मिला रहे थे...क्या किसी ने नहीं सोचा की ऐसा मुमकिन नहीं हो सकता...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' June 15, 2009 at 3:56 PM  

बिल्कुल सच है आप की बात...
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में।आप के सुझावों की आवश्यकता है,देंखे और बतायें.....

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