सुबह से सब परफेक्ट था.. सब कुछ इतना सामान्य की ताज्जुब हो रहा था... एसा भी हो सकता है क्या.. तय वक्त पर तैयार होना.. आदि का अच्छे मुड में होना..बिना ट्रेफिक में फंसे एअरपोर्ट पहुँच जाना... बोर्डिंग कार्ड के लिए कोई कतार नहीं होना.. ६० किग्रा अतिरिक्त वजन होने पर भी एयरलाइन का केवल ३० किलो के लिए पैसे लेना :)... इमिग्रेशन एक मिनिट में हो जाना.. सुरक्षा जांच के लिए कोई लाइन न होना.. फलाईट के लिए २ घंटे का इंतज़ार आराम से बीत जाना.. आदि का प्ले एरिया में मस्ती करते हुए लंच कर लेना.. बोर्डिंग करके टेक आफ से पहले ही आदि का सो जाना.. और अगले तीन घंटे तक सोते रहना...
खुशफेमिया.. यहीं ख़त्म नहीं हुई.. बैंकाक एअरपोर्ट पर कस्टम जांच बिना निकल जाना (सामान्यतः बैकाक में कस्टम जांच पर सारे सामान का एक्सरे होता है.. ). खैर... इन सभी को इंजॉय करते करते हम अपने नए अपार्टमेन्ट में पहुँच गए.. अपार्टमेंट हमारी अपेक्षाओं के हिसाब से तैयार था.. सब कुछ परफेक्ट..... शायद तूफान के पहले की खामोशी थी.. या कहें की किसी बड़ी विपदा के लिए ऊर्जा बचाने की जुगत थी.. और वो शुरू हुई जब मैंने रिशेप्सन पर पूछा की "मेरे दफ्तर से मेरे लिए एक लिफाफा रखा है, वो दे सकते है?".. पहले जबाब मिला नहीं रखा.. और फिर जबाब मिला की कुछ देर में ढूंढ़ कर देते है.. कुछ देर जब ज्यादा होने लगी तो फिर से पता किया.. और काफी मशक्कत के बाद पता चला की वो खो गया है.. गलती से किसी और को दे दिया.. और वो महाशय उसे पराई अमानत समझ अपार्टमेंट में ही छोड़ कर चले गए और सफाई करने वालो ने अपना फर्ज निभाते हुए उसे कचरे के हवाले कर दिया.. उस लिफाफे में कुछ ख़ास नहीं था.. बस एक वीजा फीस जमा कराने की रसीद थी.. और वीजा इंटरव्यू सुबह ८ बजे था.. और मुझे करीब ७.३० पर पहुँचना था.. बिना रसीद के इंटरव्यू में जा नहीं सकता.. और रविवार रात ९ बजे दूसरी फीस जमा नहीं हो सकती.. सुबह पोस्ट ऑफिस ८ बजे खुलती है.. और ८.३० से पहले दुबारा फीस जमा नहीं हो सकती... वीजा अपोइन्टमेंट विशेष अनुरोध पर मिला था.... और रात के ९ बजे बदल भी नहीं सकता था... समझ पर ताले लग गए.. और रास्ते सारे बंद नजर आने लगे.. स्थानीय साथियों से विकल्प का पता किया तो निराशा के अलावा कुछ नहीं मिला.... आखिर गूगल बाबा की शरण में गया.. पता चला की एयरपोर्ट पर एक पोस्ट ऑफिस २४ घंटे खुलती है... कुछ उम्मीद नजर आइ और वंहा पर वीसा फीस भी जमा होती है, और शुकून मिला...पर ये पता नहीं चला ली वीजा फीस भी २४ घंटे जमा होती है..... रिशेप्शन पर बताया.. मेनेजर से बात की.. तो वो तुरंत एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गए..(आखिर उन्हें पता था की उन्होंने कितनी भयंकर भूल की है)..तब तक पोस्ट ऑफिस का फोन नंबर भी मिल गया.. और ये भी पता चल गया की फीस भी २४ घंटे जमा होती है... अपार्टमेन्ट स्टाफ पर ज्यादा भरोसा नहीं था तो खुद भी एयरपोर्ट चल दिया.. ४५ मिनट में एअरपोर्ट पहुंचे.. एअरपोर्ट में जाने के लिए आपको न आई डी प्रूफ चाहिए न ही टिकट... बस रेल्वे स्टेशन की तरह घूस जाओ... १० मिनिट में फीस जमा हो गई.. और करीब रात १२ बजे फिर से अपने ठीकाने पर थे.. समस्या सुलझ गई...
ग़ज़ल, "बदल गया आलम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
10 hours ago
12 comments:
दिमाग को स्थिर रखने पर और समाधान की ओर बढ़ने पर सफलता अवश्य मिलती है। बहुत ही प्रेरक प्रसंग।
हर समाधान एक नई समस्या की शुरुआत है, और हर समस्या का समाधान होता है
रट लिया है..
हर समाधान एक नई समस्या की शुरुआत है, और हर समस्या का समाधान होता है
यही सोच कर सदैव जूझने को तत्पर रहते हैं हम ।
आल इज वेळ आमिर ने तो सीखा ही दिया | जो होता है ठीक होता है यही मान लेना चाहिए |
हर समाधान एक नई समस्या की शुरुआत है, और हर समस्या का समाधान होता है
-इसे एक कागज पर नोट करके गुमड़िया के रख लिया है.
अच्छा लगा जानकर कि इत्मिनान से सेटल हो रहे हो. शुभकामनाएँ.
फोटो वगैरह लगाते रहना.
चलिए, बाधा दूर हुई!
समस्या ही समाधान की जननी है।
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पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
achhi post hai ...seekh deti hui ...
"हर समाधान एक नई समस्या की शुरुआत है, और हर समस्या का समाधान होता है"
वेद महावाक्य !
all is well bhai..all is well :)
दिल खुश हुआ पोस्ट की शुरुआत में...दिल की धड़कन रुक गई बीच में आकर...लेकिन साँस में साँस लौटी आख़िर तक पहुँचकर... एक अच्छी सीख दी आपने... गूगल बाबा को ढाई किलो लड्डू का प्रसाद चढाइए और मन ही मन सोचिए कि ज़रूरत ईजाद की अम्मा है और गूगल उस ईजाद का बाप...मज़ा आ गया!!
Bina palak jhapke padh gayi!
Breed wakya bahut achha laga.."..har samasya ka samadhan hota hai"!
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