माफी सभी से शिर्षक मे "गधो" लिखने के .... लेकिन इसे विषेशण के रुप से ले । तात्पर्य पशुओं से है।
एसा इसलिये लिखना पडा कि एक शीर्षक पर नजर पडी लिखा था "क्या मुसलमनो कि हत्या जायज है"... इसे सोचने पर विवश किया... एसा शिर्षक क्यों...?
किसी भी सभ्य समाज मे "हत्या और जायज" शब्द साथ नहीं आ सकते । हत्या, हत्या है। घोर निन्दनीय..... चाहे मुसलमान की हो या हिन्दु की, चाहे सिक्ख की या इसाई की... भारत मे, इराक मे, अमेरीका मे...
बात केवल मनुष्यों कि क्यों... हत्या तो जानवरों की भी नाजायज है... चिटीं की भी.....और शेर की भी॥
कोई भी बुद्धीजिवी जब किसी घटना का समर्थन करता हुआ प्रतित होता है तब भी वो इस प्रकार के कृत्य कि निन्दा करते हुए अपनी बात रखता है.. अगर मै मुसलमान हु तो मेरे लिये हिन्दु कि हत्या जायज नही हो सकती... और अगर मै हिन्दु हु तो मेरे लिये मुसलमान कि हत्या जायज नही हो सकती... कैसे हो सकती है.. कोई धर्म ये नही सिखाता...
असल मे हम घटना के पिछे छुपे सामजिक और राजनैतिक कारणो कि विवेचना करते है...
हाँ मैने आतकवादीयों को हत्याओं को जायज ठहराते सुना है...
क्या गधों कि हत्या जायज है...???
Posted by
रंजन (Ranjan)
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Thursday, May 3, 2007
Labels: समाज
4 comments:
रंजन जी; जिस तरह आपको यह शीर्षक नागवार गुजरा उस तरह मुझे भी यह बर्बरतापूर्ण लगा
धुरविरोधीजी,
हम सभी इस मंच पर अपने विचार रखते है लेकिन इसका ये मतलब नही की कोई भी यहां बुराईयों और अपराधों का समर्थन करता है..
किसी भी सभ्य समाज मे "हत्या और जायज" शब्द साथ नहीं आ सकते
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सही कहा है आपने
रंजनजी, हत्या तो कभी भी, कहीं भी, किसी की भी जायज नहीं होती।
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