पिछले दिनों बैंकाक गया तो स्काई ट्रेन की सवारी की.. स्काई ट्रेन बोले तो वहाँ की मेट्रो.. पेश है स्काई ट्रेन और दिल्ली मेट्रो की तुलना..
- साफ सफाई के मामले में दोनों टक्कर की है.. प्लेटफार्म चकाचक.. ट्रेन चकाचक.. पर पटरी पर आते हमारी मेट्रो थोड़ी पिछ़ड जाती है.. वहाँ पटरी साफ दिखती है.. पर हमारी मेट्रो पर कुछ कुछ रंगीन निशान दिखाई देने लगे है.. पान और गुटके की पीक के
- हमारी मेट्रो में चार डिब्बे है (अभी तक) और स्काई ट्रेन में दो/तीन.. मतलब हमारी मेट्रो में ज्यादा लोग सफर करते हैं.. डिब्बो में सीटों को देखे तो हमारे यहाँ सीटों की बनावट इस तरह से है कि आठ की जगह मैं नौ तो आराम बैठ सकते है पर स्काई ट्रेन में सीटें इस तरह से है कि एडजस्ट नहीं कर सकते.. एक पर एक ही..
- हमारी मेट्रो में जिसको जो सीट मिले बैठ जाते है.. और एक बार बैठने पर हम किसी को सीट नही देते. चाहे महिलाये बुजुर्ग खडे़ हो.. पर स्काई ट्रेन में सीटों पर ज्यादातर महिलायें बुजुर्ग बैठे मिलते है.. हाँ कुछ सीटें बोद्ध भिक्षुओं के लिये आरक्षित भी है..
- स्काई ट्रेन बैंकाक के एक छोटे हिस्से को ही कवर करती है.. अतः आप बहुत सिमित जगह ही यात्रा कर सकतें है... जबकी मेट्रो दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा कवर करती है और विस्तार भी हो रहा है..
- मेट्रो परियोजना एकिकृत है.. मतलब अण्डर ग्राऊडं और एलिवेटेड एक ही योजना का हिस्सा है... आप एक ट्रेन से एक टिकट से दोनों हिस्सों में सवारी कर सकतें है.. जबकि बैकाक में स्काई ट्रेन और अंडर ग्राउडं ट्रेन (MRTA) दो अलग योजनाऐं है.. इंटरचेंज स्टेशन पर आपको एक प्लेटफार्म से बाहर आकर दुसरे प्लेटफार्म में जाना पड़ता है.. लेकिन (शायद) एक टिकट से काम चल जाता है . (मैने MRTA में सफर नहीं किया, इस बार जाऊगां तो ट्राई करुंगा)..
- टिकट मेट्रों में काफी लोग टिकट खिड़की से टिकट लेते है.. सिस्टम मेन्युल है.. BRT स्टेशन पर टिकट वेंडिंग मशीन लगी है.. सिक्के आपको काउंटर पर मिल जाते है और टिकट खुद लेना होता है.. जो एक विजिटिंग कार्ड जैसा होता है प्लास्टिक का.. मेट्रो में टिकट सिक्के जैसा होता है..
- स्काई ट्रेन बाहार से विज्ञापन से पुती नजर आती है.. अंदर भी काफी विज्ञापन है पर मेट्रो साफ सुथरी है..
- स्काई ट्रेन के कोच में सुचना के लिये डिस्प्ले स्क्रिन है... जिस पर विज्ञापन और सुचना आती रह्ती है..मेट्रो में सुचना के लिये एनलॉग बोर्ड है..
- मेट्रो के भीड़ भरे स्टेशन पर बहुत सुरक्षा इंतजाम होते है.. बल्कि पेसेंजर को चढ़ाने उतारने के लिये मार्शल भी तैनात रहते है.. स्काई ट्रेन के प्लेटफार्म पर एक्का दुक्का सुरक्षा कर्मी होते है.. और सारे लोग आत्म अनुसाशित हो कर चढ़ते उतरते है
- मेट्रो के स्टेशन शहर कि मुख्य इमारतों से नहीं जुड़ते.. आपको मेट्रो स्टेशन से बाहर आकर सडक क्रास कर या पैदल चल अन्य जगह जाना होता है.. स्काई ट्रेन के स्टेशन प्रमुख इमारतों जैसे मॉल, होटल से सीधे जुड़े है.. प्लेटफार्म से बाहर आकर विशेष कॉरिडोर से आप सीधे पहुँच जाते है.. सड़क के ट्रेफिक की आपको चिन्ता करने कि जरुरत नहीं.. और तो और ट्रेन की पटरी के समानान्तर फ्लोर पर (सड़क के उपर दो लाइन है.. पहले पर फुट पाथ और दुसरे पर ट्रेक) पैदल यात्री आराम से चल अपनी मंजिल पर पहुँच जाते है..
- टिकट दर - ये सबसे महत्तवपुर्ण है.. आपको सफर के लिये कितने पैसे खर्च करने होते है..स्काई ट्रेन पर मिनिमन टिकट है १५ बाहत का (लगभग २२ रुपये) जबकि मेट्रो ६ रुपये.. स्काई ट्रेन में ६ किमी जाने के लिये मैने खर्च किये लगभग ३० रुपये.. जबकी मेट्रो में १५ रुपये देकर रोज ३० किमी सफर करता हूँ..
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वैसे आदि अगर ये बतायेगा तो मेट्रो को तेत्रो कहेगा आप समझ लेना..
Photo courtesy
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/47/Bangkok_Skytrain_interior.JPG
www.panoramio.com/
http://cache.virtualtourist.com/236571-BTS_Skytrain-Bangkok.jpg
http://www.readbangkokpost.com/images/skytrain10.jpg
http://www.funonthenet.in/articles/new-delhi-pictures.html
http://www.urbanrail.net/as/delh/delhi.htm
http://risingcitizen.blogspot.com/2009/02/photo-gallery-of-delhi-metro-and-metro.html
8 comments:
इतना सब पढने के बाद तो हम अपने मेट्रो के पक्ष में ही वोट देंगे. अच्छी जानकारी. आभार
शुक्रिया इस तुलनात्मक अध्ययन का।
यह एक उम्दा कार्य किया. इस तरह के तुलनात्मक अध्ययन की और भी कई क्षेत्रों में दरकार है.
साधुवाद इस कार्य हेतु!!
चलिए बैंकॉक की तेत्रो भी दिखा दी आपने.. बढ़िया रहा..
पोस्ट अ कमेन्ट का कलर बदलिए.. नज़र नहीं आ रहा..
धन्यवाद कुश.. बहुत दिनों से सोच रहा था.. आज बदल दिया.. कैसा है?
हाँ ये अच्छा है.. :)
तुलनात्मक अध्ययन बहुत अच्छा लगा ।
अपने लिए तो मेट्रो ही लक्जरी है
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